नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर(Medha Patkar) को न्यायालय ने मानहानि मामले में दोषी ठहराया है। तत्कालीन केवीआईसी अध्यक्ष वीके सक्सेना (अब दिल्ली एलजी) ने उनके खिलाफ याचिका दी थी।
पाटकर और सक्सेना के बीच 2000 से ही एक कानूनी लड़ाई चल रही है, जब पाटकर ने सक्सेना को उनके और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने का वाद दिया था। उस समय सक्सेना अहमदाबाद में गैर सरकारी संगठन नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज का अध्यक्ष था। सक्सेना ने टीवी चैनल पर उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और प्रेस को मानहानिकारक बयान देने के लिए भी पाटकर के खिलाफ दो मामले दायर किए थे।
मेधा पाटकर(Medha Patkar): एक पर्यावरण कार्यकर्ता और सामाजिक न्याय की सेनानी को 5 मास की सज़ा ?
परिचय:
मेधा पाटकर(Medha Patkar) का नाम भारतीय सामाजिक और पर्यावरण आंदोलनों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वे एक प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता और सामाजिक न्याय की समर्थक हैं, जिन्होंने देश के कई प्रमुख आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनका सबसे प्रमुख योगदान “नर्मदा बचाओ आंदोलन” में रहा है, जो नर्मदा नदी पर बनाए जा रहे बड़े बांधों के खिलाफ था।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
मेधा पाटकर(Medha Patkar) का जन्म 1 दिसंबर 1954 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता एक स्वतंत्रता सेनानी और माँ एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) से सामाजिक कार्य में स्नातक और परास्नातक की डिग्री प्राप्त की।
नर्मदा बचाओ आंदोलन:
मेधा पाटकर(Medha Patkar) ने 1985 में नर्मदा बचाओ आंदोलन (NBA) की स्थापना की। यह आंदोलन नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध और अन्य परियोजनाओं के खिलाफ था, क्योंकि ये परियोजनाएँ लाखों लोगों को विस्थापित कर रही थीं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही थीं। पाटकर ने इस आंदोलन के माध्यम से विस्थापित लोगों के पुनर्वास और पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों को उजागर किया।
सामाजिक न्याय और अधिकार:
पाटकर ने केवल पर्यावरण संरक्षण ही नहीं, बल्कि आदिवासियों, दलितों, किसानों और मजदूरों के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई है। उन्होंने भूमि अधिग्रहण, विस्थापन और पुनर्वास के मुद्दों पर सरकार के खिलाफ संघर्ष किया है। उनके आंदोलनों ने सरकार को नीतिगत बदलाव करने पर मजबूर किया है।
पुरस्कार और सम्मान:
मेधा पाटकर(Medha Patkar) को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड (1991), गोल्डमैन एनवायरनमेंटल प्राइज (1992) और मदर टेरेसा अवॉर्ड फॉर सोशल जस्टिस (2014) शामिल हैं।
वर्तमान गतिविधियाँ:
वर्तमान में, पाटकर न केवल नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ी हुई हैं, बल्कि कई अन्य सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर भी काम कर रही हैं। वे विभिन्न मंचों पर अपने विचार प्रस्तुत करती हैं और युवाओं को सामाजिक कार्यों में भागीदारी के लिए प्रेरित करती हैं।
मेधा पाटकर ने अपने जीवन को समाज और पर्यावरण की सेवा में समर्पित किया है। उन्होंने न केवल नर्मदा नदी के किनारे बसे लाखों लोगों की आवाज़ को बुलंद किया, बल्कि पूरे देश को सामाजिक न्याय और पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझाया। उनके प्रयासों और संघर्षों ने उन्हें एक प्रेरणा स्त्रोत बना दिया है।